Stolen: Release Date, Trailer, Songs, Cast, Stolen Prime Video New Hindi Movie | Stolen Movie Review | Abhishek Banerjee | #stolen #primevideo

    Release Date, 4 June 2025
    Language, Hindi, English
    Genre, Crime
    Duration1h 32min
    Cast, Abhishek Banerjee, Shubham, Mia Maelzer, Harish Khanna, Sahidur Rahaman, Lovekush Kundu
    Director, Karan Tejpal
    Writer, Gaurav Dhingra, Swapnil Salkar, Karan Tejpal
    Cinematography, Isshaan Ghosh
    Producer, Gaurav Dhingra
    Production, Jungle Book Studio
    Certificate, 16+

🛤 कहानी की शुरुआत – स्टेशन से एक तूफान की ओर

फिल्म "Stolen" की शुरुआत होती है एक सुनसान और वीरान रेलवे स्टेशन से, जहां सुबह-सुबह की धुंध में एक आदमी खड़ा है – गौतम बंसल, जो अपने छोटे भाई रमन को लेने आया है। एक आलीशान डेस्टिनेशन वेडिंग की तैयारियों के बीच गौतम का चेहरा तनाव से भरा है, क्योंकि उसके और रमन के बीच रिश्ते लंबे समय से खटास से भरे हैं।



जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर आती है, हम मिलते हैं रमन से – एक युवा, जो अपने परिवार और उसकी दिखावे भरी दुनिया से काफी अलग सोच रखता है। दोनों भाइयों की मुलाकात काफी ठंडी होती है, और हम महसूस करते हैं कि उनके बीच भावनात्मक दूरी बहुत गहरी है।

इसी समय, कैमरा एक तीसरे किरदार पर जाता है – झुम्पा महतो, एक आदिवासी महिला, थकी हुई, गंदे कपड़ों में, स्टेशन पर सोती हुई। जैसे ही वह जागती है, उसे एहसास होता है कि उसकी नवजात बच्ची चोरी हो गई है। उसका दर्द और चीख पुकार पूरे स्टेशन को झकझोर देती है।




🧩 पहली मुलाकात – तीन जिंदगियों का टकराव

गौतम और रमन, जो एक-दूसरे से बमुश्किल बात कर रहे थे, झुम्पा की मदद करने के लिए आगे आते हैं। वह टूट चुकी है, डर और हताशा से कांप रही है। किसी को उस पर भरोसा नहीं हो रहा, स्टेशन के लोग उसकी बात को पागलपन समझ रहे हैं।

गौतम का स्वभाव पहले तो इस मुद्दे में पड़ने से बचने वाला है, लेकिन रमन उसे बार-बार कहता है कि हमें उसकी मदद करनी चाहिए। रमन का यह इंसानियत भरा नजरिया फिल्म की दिशा तय करता है।

झुम्पा की बच्ची का पता लगाने के लिए जब तीनों स्टेशन से बाहर निकलते हैं, तब उन्हें यह एहसास होता है कि यह कोई साधारण चोरी नहीं है – यह एक मानव तस्करी का मामला है, और उन्होंने एक ऐसे सिस्टम से पंगा ले लिया है जो बहुत गहरा और खतरनाक है।


🌍 भारत का असली चेहरा – हिंटरलैंड की सच्चाई

जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, हम इन तीनों किरदारों को एक खतरनाक यात्रा पर निकलते देखते हैं – एक ऐसी यात्रा जो उन्हें भारत के सबसे अंधेरे और उपेक्षित इलाकों से होकर ले जाती है।

गांवों के बीच से गुजरती संकरी पगडंडियाँ, भ्रष्ट पुलिस अधिकारी, लालची दलाल, और वह समाज जो झुम्पा जैसे गरीब और हाशिए पर खड़े लोगों को इंसान नहीं मानता – यह सब "Stolen" की कहानी को एक रियलिस्टिक और दिल दहला देने वाला टोन देता है।

झुम्पा एक माँ है – और यह फिल्म माँ की बेबसी और ताकत दोनों को दर्शाती है। उसकी आंखों में बस एक ही सवाल है – "मेरी बच्ची कहाँ है?" और इसी सवाल का जवाब ढूंढना इस फिल्म का मूल है।


🧠 भावनात्मक जटिलता – भाइयों के रिश्ते की परतें

गौतम और रमन के बीच का रिश्ता इस यात्रा में धीरे-धीरे खुलता है। शुरुआत में दोनों एक-दूसरे से असहज रहते हैं, लेकिन जैसे-जैसे मुश्किलें बढ़ती हैं, वैसा ही इनका रिश्ता भी बदलने लगता है।

गौतम, जो शुरुआत में खुदगर्ज़ और व्यावसायिक सोच वाला लगता है, जब झुम्पा की स्थिति और उसके दर्द को महसूस करता है, तो उसका इंसानियत वाला पक्ष सामने आता है। वहीं रमन, जो हमेशा आदर्शवादी था, जब ज़मीनी हकीकत से टकराता है – भूख, लालच, और अमानवीयता – तो उसकी मासूमियत धीरे-धीरे टूटने लगती है।


🧪 सामाजिक संदेश – वर्गभेद, जातिवाद और व्यवस्था से मोहभंग

"Stolen" एक क्राइम थ्रिलर जरूर है, लेकिन इसके भीतर एक बहुत ही मजबूत सामाजिक आलोचना छिपी है। फिल्म दिखाती है कि कैसे समाज गरीबों, विशेषकर आदिवासी और दलित महिलाओं को एक इंसान भी नहीं समझता।

झुम्पा, जो एक मां है, उसकी आवाज़ सुनी नहीं जाती। पुलिस उसे झूठा समझती है, आम लोग उस पर शक करते हैं, और मदद करने की बजाय उसे दुत्कारते हैं। यह समाज की वह बेरुखी है जो वर्गवाद और जातिवाद से पैदा होती है।

वहीं दूसरी ओर फिल्म यह भी दिखाती है कि कैसे संपन्न वर्ग के लोगों को भी, जब असली दुनिया की सच्चाई से टकराना पड़ता है, तो उनका सारा दिखावा और ऊपरी समझदारी बिखर जाती है।


🔍 थ्रिल, रहस्य और अपराध की परतें

फिल्म का मिड-पॉइंट एक झटका देता है। तीनों जब एक सुराग के पीछे जाते हैं, तो पता चलता है कि झुम्पा की बच्ची को एक अंतरराज्यीय मानव तस्करी गैंग ने चुराया है, जो नवजात बच्चों को अमीर लोगों को बेचता है – कभी गोद लेने के नाम पर, तो कभी अंग व्यापार के लिए।

इस खुलासे के साथ ही फिल्म में एक्शन, चेस सीक्वेंस, और एक बेहद इंटेंस थ्रिलर की एंट्री होती है। गौतम और रमन दोनों अब सिर्फ झुम्पा की मदद नहीं कर रहे, बल्कि एक अपराध के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।


💔 क्लाइमेक्स – हार की दहलीज़ पर उम्मीद

फिल्म का क्लाइमेक्स बेहद दिल तोड़ देने वाला है, लेकिन उसमें एक खास किस्म की उम्मीद भी है। जब ये तीनों आखिरकार गैंग के ठिकाने तक पहुंचते हैं, तो हालात बहुत बुरे होते हैं। उनकी जान को खतरा होता है, उन्हें धमकियां दी जाती हैं।

लेकिन झुम्पा की माँ की ताकत उन सब पर भारी पड़ती है। वह किसी भी कीमत पर हार मानने को तैयार नहीं। एक बहुत ही इमोशनल और शक्तिशाली मोमेंट में वह अपनी बच्ची को बचा लेती है – घायल हालत में, लेकिन ज़िंदा।

गौतम और रमन, जो इस सफर में सिर्फ बाहरी दर्शक थे, अब उस दर्द और सच्चाई का हिस्सा बन चुके हैं। दोनों का रिश्ता इस यात्रा में बदल चुका होता है – अब वे सिर्फ भाई नहीं हैं, वे संघर्ष के साथी हैं।


🎭 अभिनय – जान डाल देने वाले परफॉर्मेंस

  • अभिषेक बनर्जी ने गौतम के किरदार में एक बेहद layered performance दी है। उनका ट्रांजिशन – एक प्रिविलेज्ड इंसान से एक संवेदनशील और जिम्मेदार व्यक्ति बनने तक – काबिल-ए-तारीफ है।

  • शुभम वर्धन (रमन) के अभिनय में युवावस्था की idealism और practicality की लड़ाई साफ दिखाई देती है। वह हमें सोचने पर मजबूर करते हैं।

  • लेकिन फिल्म की जान हैं मिया मेल्ज़र – झुम्पा के किरदार में उन्होंने जो दर्द, ताकत और संघर्ष दिखाया है, वह दिल तोड़ देता है। बिना ज़्यादा संवादों के, सिर्फ हावभाव और आंखों से उन्होंने पूरी फिल्म को उठा लिया है।


🎼 बैकग्राउंड स्कोर और सिनेमैटोग्राफी

"Stolen" का बैकग्राउंड स्कोर तनाव और इमोशन दोनों को बेहतरीन तरीके से बढ़ाता है। वहीं इसकी सिनेमैटोग्राफी – खासकर रेलवे स्टेशन, झोपड़पट्टियों और गांवों की लोकेशन – फिल्म की ग्रिट और रियलिज्म को गहराई देती है।


🔚 निष्कर्ष – एक ज़रूरी फिल्म

"Stolen" सिर्फ एक क्राइम थ्रिलर नहीं है – यह एक सामाजिक दर्पण है जो हमें यह दिखाता है कि हमारे देश की नींव में कितनी असमानता, कितना अन्याय और कितना दर्द छिपा है।

यह फिल्म सवाल उठाती है – क्या हम वाकई इंसान हैं? क्या हम झुम्पा जैसी माँ की चीख़ सुन पाते हैं? या हम भी उस व्यवस्था का हिस्सा हैं जो गरीबों की आवाज़ को कुचल देती है?


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